Emotional

“खुद को इतना भी मत बचाया कर …….बारिशें हों तो भीग जाया कर”………………बशीर बद्र

“खुद को इतना भी मत बचाया कर …….बारिशें हों तो भीग जाया कर”. जी हाँ याद करिए कि आख़िरी बार आप कब नहाये थे बारिश में? शायद बचपन में ! माएं चिल्लाती रहती थीं और बचपन भीगता रहता था. आ जाओ अब…. जुकाम हो जायेगा….बहुत नहा लिए….बुखार करना है क्या…?..पर मां की मीठी डांट को अनसुना करता बचपन भीगता रहता था…..और बुखार तो अक्सर हो ही जाया करता था. पर अगले दिन यदि फिर रिमझिम की झड़ी लग जाती थी तो बस चलता तो फिर नहाने भाग जाया करते थे. क्या दिन थे..बेहिचक……बेधड़क …..कोई डर नहीं…..बस उमंगें ही उमंगें …..सिर्फ उल्लास ….और वो भी…बिंदास. कहाँ गयी वो मस्ती? बचपन के निकल जाने के बाद फिर कब बारिश में भीगना हुआ…याद आया? अब ये मत कहियेगा कि क्या करें एक तो कमबख्त बारिश आती नहीं और आती है तो बेवक्त ….नहा नहीं सकते ना ….. क्या excuse है. अरे भाई बशीर बद्र साहब ये थोड़े ही कह रहे हैं कि बारिश में नहाना ज़रूरी है ? वो तो ये याद दिला रहे हैं कि……..जा …भीग जा….ऐसे ही……यूँ ही……कभी…कभी….अपने बनाये हुए नियमों को तोड़ दे. हो जा बिंदास…….जा….जी ले अपनी ज़िन्दगी….सिमरन….थोडा बेपरवाह तो हो जाओ कभी कभी.

बशीर साहब आगे कहते हैं, “चाँद ला कर कोई नहीं देगा………..अपने चेहरे से जगमगाया कर ……” बस ज़िन्दगी भर यूँ ही भागते मत रहो ….खुशियों की कल्पनाओं में. भाई कभी कभी ..खुश.. भी हो लो! यूँ ही…बगैर किसी बात के. अब ये मिल जाये……अब वो मिल जाये……अब ये हो जाये…….अब वो हो जाये…बस इन्हीं ख्वाहिशों में ज़िन्दगी कटती जाती है. रुक कर सोचना…..मुड़ कर देखना…. तो हमारी कंडीशनिंग का हिस्सा होता नहीं ना. दूसरे के पास जो है बस वो मिल जाये! इसी rat race में उलझे रहते हैं. जरा सोचिये चाँद जितनी दूर पड़ी चीज़ों को पाने की हसरत कितना परेशान करती है हमको और इस हसरत में उलझे हमें ये याद ही नहीं रहता कि दूर से चमकती दिखती चीज़ें अक्सर पास आने पर फीकी भी निकल जाती हैं. तो छोड़िए जी ऐसे चाँद को और नां ही किसी से उम्मीद रखें कि वो आपको चाँद-तारे लाकर देंगे……तो खुद क्यूँ न बन जाएँ चाँद? अब चाँद बनने के लिए beauty parlour नहीं जाना है ….बस अपने अन्दर से खुश रहना सीखना है. फिर देखिये कैसे जगमगाता रहता है आपका चेहरा.

बशीर बद्र साहब आगे कहते हैं, “काम ले हसीं होठों से………..बातों बातों में मुस्कुराया कर”…….जी हाँ…….मुस्कुराना सीख लें…याद रखें…सिर्फ हसीनाओं के होंठ हसीं हों ये ज़रूरी नहीं. हर वो चेहरा जो मुस्कराहट से भरा है, बड़ा ही हसीं लगता है. मुस्कुराने की हज़ार वजहें होती हैं हमारे पास …..बस फुरसत ही नहीं होती. ज़िन्दगी की कशमकश में कुछ ऐसे उलझे रहते हैं कि या तो मुस्कान आती ही नहीं या फिर आती है तो किसी की बेवकूफी पर, किसी की गफलत पर, किसी के कुढ़ने पर या चिढ़ने पर.कितनी negative हो चुकी है हमारी मुस्कान! मुस्कान हो तो मां के चेहरे जैसी, जो उसके होठों पर आ जाती है अपने बच्चे को गोद में लेते ही. निश्छल, कोमल, सरल मुस्कान !! खुद ब खुद मुस्कराना आ जाये तो क्या बात. मीठी मीठी शरारतों को याद करके मुस्कुराएँ तो क्या कहना. खुद पर…अपनी बेवकूफियों पर मुस्कुराएँ तो माशा-अल्लाह  क्या बात होगी.

“धूप मायूस लौट जाती है…………..छत पर किसी बहाने आया कर”……..ये तो बड़ी ही रोमांटिक बात कह गये बशीर साहब. ये अंदाज़ तो पुराने ज़माने का है. अब शहरों में छतें कहाँ. न किसी को फुरसत है छत पर जाने की…रोमांस अब सिमट कर रह गया है, मोबाइल में, whatsapp में या फिर facebook पर !! किसी जमाने में प्रेमी टंगे रहते थे छतों पर…इस आस पर की एक बार दीदार हो जाये…..तू…..छत पर आजा गोरिये” और गर सुबह सुबह दीदार हो गए तो क्या कहना….. पहले सारा रोमांस बस देखने में ही सिमट कर रह जाया करता था….. या फिर ख़तो-खिताबत में……..जो सबके नसीब में कहाँ होता था. चलिए जाने दीजिये छतों को और धूप को भी. धूप तो किसी को भी पसंद नहीं. 90% लोगों को विटामिन D3 की कमी है.

आखिरी शेर में बशीर बद्र साहब कहते हैं, “कौन कहता है दिल मिलाने को………….कम से कम हाथ तो मिलाया कर”……क्या अंदाज़ है कहने का कि…अजी दिल मिलाने को कौन कमबख्त कह रहा है….बस कभी कभी मिल ही जाया कर. दिल तो आजकल जिस तेजी से मिलते हैं ….उस से ज्यादा तेजी से टूट भी जाते हैं. दिल मिलानामहंगा भी पड़ सकता है. दिल मिलाते ही गिफ्ट देना पड़ती है! और महंगे मोबाइल से बढ़िया क्या गिफ्ट होगी, इज्ज़त भी कोई चीज़ है आखिर. पर जेब पर कुछ भारी पड़ जाता है. बशीर साहब के ज़माने में दिल या तो अक्सर इकतरफा मिलते थे या फिर दूर दूर से अंखियों में ही !! या फिर जबरदस्ती मिलाये जाते थे……जी हाँ शादी करवा के. पर आराम था. दिल या दिलवर के न मिलने के गम को मीठी मीठी रूमानी बातें भर दिया करती थीं. बातें जो होती तो बेहद रोमांटिक…पर कही नहीं जाती थीं….बस दोस्तों की महफिलों की किस्सा-गोई का हिस्सा भर रह जाती थीं. आजकल दिल मिलाना आसन है. लोग एक नहीं कई बार दिल मिला लेते हैं.

तो क्यूँ पड़ें इस दिल-विल के झंझट में? Be Practical !! दिल वहीँ मिलाएं जहां maximum benefit हो. बस हाथ मिलाते रहें. लोगों को ये ऐहसास दिलाते रहें कि आप उनके साथ हैं. आजकल सब मिल जाता है बस अपनेपन का ऐहसास दिलाने वाले ही नहीं मिलते !!!

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